आचार्य श्रीराम शर्मा >> व्यक्तित्व परिष्कार की साधना व्यक्तित्व परिष्कार की साधनाश्रीराम शर्मा आचार्य
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नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
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गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
ॐ भूर्भुवः स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भगों देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।।
भावार्थ- उस प्राणस्वरूप दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तरात्मा में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
गायत्री उपासना हम सब के लिए अनिवार्य
गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी कहा गया है। वेदों से लेकर धर्मशास्त्रों तक का समस्त दिव्य ज्ञान गायत्री के बीजाक्षरों का ही विस्तार है। माँ गायत्री का अंचल पकड़ने वाला साधक कभी निराश नहीं हुआ। इस मंत्र के चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों सिद्धियों के प्रतीक हैं। गायत्री उपासना करने वाले की सभी मनोकामनाएँ पूरी होती हैं, ऐसा ऋषिगणों का अभिमत है।
गायत्री वेदमाता है एवं मानव मात्र का पाप नाश करने की शक्ति उसमें है। इससे अधिक पवित्र करने वाला और कोई मंत्र स्वर्ग और पृथ्वी पर नहीं है। भौतिक लालसाओं से पीड़ित व्यक्ति के लिए भी और आत्मकल्याण की इच्छा रखने वाले मुमुक्षु के लिए भी एकमात्र आश्रय गायत्री है। गायत्री के द्वारा आयु प्राण, प्रजा, पशु कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चत् के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं। जो विधिपूर्वक उपासना करने वाले हर साधक को निश्चित ही प्राप्त होते हैं।
भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को नित्य नियमित गायत्री उपासना करनी चाहिए। विधि पूर्वक की गयी उपासना साधक के चारों ओर एक रक्षाकवच का निर्माण करती है व विभिन्न विपत्तियों-आसन्न विभीषिकाओं से उसकी रक्षा करती है। प्रस्तुत समय युग संधि का है। आगामी सात वर्षों में पूरे विश्व में तेजी से परिवर्तन होगा। इस विशिष्ट समय में की गयी गायत्री उपासना के प्रतिफल भी विशिष्ट होंगे। युगऋषि, वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पं श्री राम शर्मा आचार्य जी ने गायत्री के तत्त्वदर्शन को जन-जन तक पहुँचाया व उसे जन सुलभ बनाया है। प्रत्यक्ष कामधेनु की तरह इसका हर कोई पय पान कर सकता है। जाति, मत, लिंग भेद से परे गायत्री सर्वजनीन है सबके लिए उसकी साधना करने व लाभ उठाने का मार्ग खुला हुआ है।
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- नौ दिवसीय साधना सत्रों का दर्शन दिग्दर्शन एवं मार्गदर्शन
- निर्धारित साधनाओं के स्वरूप और क्रम
- आत्मबोध की साधना
- तीर्थ चेतना में अवगाहन
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- त्रिकाल संध्या के तीन ध्यान
- दैनिक यज्ञ
- आसन, मुद्रा, बन्ध
- विशिष्ट प्राणायाम
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- गायत्री महामंत्र और उसका अर्थ
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